राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनित किया है। केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया और गृह मंत्रालय ने सोमवार को इस आशय की अधिसूचना जारी की। जारी अधिसूचना के मुताबिक, ‘संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (1) के उपखंड (ए) और इसी अनुच्छेद के खंड (3) के तहत राष्ट्रपति राज्यसभा के नामित सदस्यों में से एक के रिटायरमेंट की वजह से रिक्त हुई सीट पर रंजन गोगोई को नामित करते हैं।’ यह सीट केटीएस तुलसी के रिटायरमेंट की वजह से रिक्त हुई है।
पूर्वोत्तर से आने वाले पहले सीजेआई
रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को असम में हुआ था। गोगोई पूर्वोत्तर के पहले व्यक्ति बने जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उनके पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने 1978 में बतौर एडवोकेट अपने कार्यकाल की शुरुआत की थी। अपने कॅरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने गुवाहाटी होईकोर्ट में वकालत की। 28 फरवरी 2001 को गुवाहटी हाईकोर्ट में उन्हें स्थायी न्यायमूर्ति के तौर पर नियुक्त किया गया। वह 12 फरवरी 2011 को पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस बने। फिर पदोन्नति के बाद वह 23 अप्रैल, 2012 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बने। तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के रियाटर होने के बाद गोगोई को चीफ जस्टिस का पद मिला था। शपथ लेने के साथ ही उन्होंने अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक बेंच का गठन किया था और खुद पीठ की अगुवाई की थी।
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई, भारत के 46 वें मुख्य न्यायाधीश, जिन्हें दशकों पुराने राजनीतिक और धार्मिक रूप से संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद जैसे विभिन्न विषयों पर कई ऐतिहासिक फैसले के लिए श्रेय दिया गया था, पिछले साल 17 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे।
राम जन्म भूमि
अयोध्या राम जन्म भूमि मामले में जस्टिस गोगोई के नेतृत्व वाली 5 सदस्य बेंच ने राम लला के पक्ष में फ़ैसला सुनाया व अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करते हुऐ मुस्लिम पक्ष के सुन्नी वकफ बोर्ड को मस्ज़िद निर्माण के 5 एकड़ जमीन का आदेश सुनाया जिस फ़ैसले का पूरे देश ने स्वागत किया ।
सबरीमाला
CJI ने एक पीठ का भी नेतृत्व किया, जिसने 3-2 के बहुमत से सात-न्यायाधीशों की एक बड़ी बेंच को संदर्भित किया, जिसमें शीर्ष अदालत के ऐतिहासिक 2018 के फैसले की समीक्षा करने की दलील दी गई थी जिसमें केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं और लड़कियों को प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी।
जस्टिस गोगोई का नाम एक ऐसी बेंच के लिए भी याद किया जाएगा, जिसने मोदी सरकार को दो बार क्लीन चिट दी थी – पहले रिट पिटीशन पर और फिर 14 दिसंबर, 2018 के फैसले की समीक्षा की मांग पर, फ्रांस के साथ राफेल फाइटर जेट डील में फर्म डसॉल्ट एविएशन। इसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ “चौकीदार चोर है” टिप्पणी को गलत तरीके से जिम्मेदार ठहराते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी शीर्ष अदालत में रोक दिया।
CJI गोगोई की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने वित्त अधिनियम, 2017 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला भी सुरक्षित रख लिया है, क्योंकि इसे संसद ने मनी बिल के रूप में पारित किया था।
जस्टिस गोगोई का 16 दिसंबर 2015 को दिया गया एक आदेश उन्हें इतिहास में खास मुकाम पर दर्ज कराता है। देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए किसी राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था। जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस वीरेन्द्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त करने का आदेश जारी किया था। न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि सर्वोच्च अदालत के आदेश का पालन करने में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का नाकाम रहना बेहद अफसोसजनक और आश्चर्यचकित करने वाला है। कोर्ट को लोकायुक्त की नियुक्ति का स्वयं आदेश इसलिए देना पड़ा था क्योंकि कोर्ट के बार बार आदेश देने के बावजूद लोकायुक्त की नियुक्ति पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, नेता विपक्ष और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश में सहमति नहीं बन पाई थी।
एनआरसी पर अपनाया था सख्त रुख
गोगोई ने उस बेंच का नेतृत्व किया, जिसने यह सुनिश्चित किया कि असम में एनआरसी की प्रक्रिया निर्धारित समय सीमा में पूरी हो जाए। पब्लिक फोरम में आकर उन्होंने एनआरसी की प्रक्रिया का बचाव करते हुए उसे सही बताया था। गोगोई एक ऐसे मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी याद किए जाएंगे जो सुप्रीम कोर्ट की पवित्रता की रक्षा करने के लिए अपनों के खिलाफ भी आवाज उठाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक कामकाज का विरोध करने के लिए तीन अन्य वरिष्ठ जजों के साथ प्रेस कांफ्रेंस की थी।